Digital Corpus for Graeco-Arabic Studies

Galen: In Hippocratis Epidemiarum librum I (On Hippocrates' Epidemics I)

ταὐτὰ δὲ καὶ ὁ τοῦ φθινοπώρου, μείζων μὲν ὢν ἤπερ τὸ ἔαρ (ἐκ- τείνεται γὰρ εἰϲ δύο μῆναϲ), ἀπολειπόμενοϲ δὲ τῷ μεγέθει πάμπολυ τοῦ κατὰ τὸ θέροϲ τε καὶ τὸν χειμῶνα χρόνου. ταῦτ’ οὖν εἰϲ ἅπαξ μὲν εἰρήϲθω μοι νῦν, εἰϲ δὲ τὸν ἑξῆϲ ἅπαντα λόγον μνημονευέϲθω πρὸϲ τὸ μετάγεϲθαι τὰϲ ὥραϲ ῥᾳδίωϲ εἰϲ τοὺϲ ἐν ἑκάϲτῳ τῶν ἐθ- νῶν μῆναϲ, ἄλλουϲ παρ’ ἄλλοιϲ ὄνταϲ· ὡϲ εἰ πάντεϲ εἶχον τοὺϲ αὐ- τούϲ, οὐκ ἂν ἀρκτούρου καὶ πλειάδοϲ καὶ κυνὸϲ ἰϲημεριῶν τε καὶ τροπῶν ἐμνημόνευϲεν ὁ Ἱπποκράτηϲ, ἀλλ’ ἤρκεϲεν ἂν εἰπεῖν αὐτῷ, κατὰ Μακεδόναϲ εἰ οὕτωϲ ἔτυχεν ὀνομάζοντι, τοῦ Δίου μηνὸϲ ἀρχομένου τοιάνδε τινὰ γενέϲθαι κατάϲταϲιν ἐν τῇ τοῦ περιέ- χοντοϲ κράϲει. νυνὶ δ’ ἐπειδὴ τὸ τοῦ Δίου Μακεδόϲι μὲν μόνοιϲ ϲαφέϲ, Ἀθηναίοιϲ δὲ καὶ τοῖϲ ἄλλοιϲ ἀνθρώποιϲ οὐ ϲαφέϲ, Ἱππο- κράτηϲ δ’ ἐβούλετο τοὺϲ ἐξ ἁπάντων τῶν ἐθνῶν ὠφελεῖν, ἄμεινον ἦν αὐτῷ γράψαι μόνην τὴν ἰϲημερίαν ἄνευ τοῦ μνημονεῦϲαί τινοϲ μηνόϲ. ἡ μὲν γὰρ ἰϲημερία κοϲμικόν ἐϲτι πρᾶγμα, οἱ δὲ μῆνεϲ ἐπι- χώριοι καθ’ ἕκαϲτον ἔθνοϲ. ὅϲτιϲ γοῦν ἀϲτρονομίαϲ ἀπείρωϲ ἔχει, μά- λιϲτα μὲν ἴϲτω μὴ πειθόμενοϲ Ἱπποκράτει προτρέποντι πρὸϲ αὐτὴν ἕνεκα τῆϲ τῶν εἰρημένων χρήϲεωϲ. ἐπεὶ δὲ φιλάνθρωπον εἶναι δοκεῖ καὶ τοὺϲ τοιούτουϲ ὠφελεῖν, ἐγὼ πειράϲομαι τὴν ἐνδεχομένην ὑπο- γράψαι βοήθειαν, ᾗ προϲέχοντεϲ τὸν νοῦν ἁπάντων ὧν Ἱπποκράτηϲ λέγει κατὰ ταύτην τὴν ῥῆϲιν καρπώϲονται τὴν χρῆϲιν. τεμνομένου δὴ τοῦ παντὸϲ ἔτουϲ εἰϲ τέϲϲαρα μέρη κατ’ ἰϲημερίαϲ τε καὶ τροπὰϲ ἅπαϲ τιϲ ἐρωτήϲαϲ ἀϲτρονομικὸν ἄνδρα, τὰ τέϲϲαρα μέρη ταῦτα ἐν τίϲι γίνονται μηϲίν καὶ πόϲτῃ καθ’ ἕκαϲτον αὐτῶν, εἶτα εἰδὼϲ αὐτὰ δυνήϲεται καὶ περὶ τῶν ἄλλων ἐπιϲημαϲιῶν τῶν καθ’ ἕκαϲτον ἄϲτρων ἀκούων ἕπεϲθαι. οἷον εἰ οὕτωϲ ἔτυχεν, ἐὰν προμάθῃ τιϲ κατὰ τὴν

‌وكذلك أيضاً زمن الخريف، وذلك أنّ زمان الخريف، وإن كان أطول من زمان الربيع إذ كان شهرين، فإنّه على حال أنقص كثيراً من مدّة زمن الصيف والشتاء.

فاكتفِ منّي بقولي لك ما قلت من هذا مرّة واحدة واحْفَظْه عنّي أحْضِرْه ذهنك في جميع ما يتلوه من قولي، حتّى تقدر بسهولة أن تعرف هذه الأوقات من الشهور في كلّ بلد، إذ كانت الشهور عند أهل البلدان والأمم المختلفة مختلفة.

ولو كانت الشهور تجري في جميع البلدان على أمر واحد منتظم، لَما احتاج أبقراط أن يذكر «أنواء الثريّا» والسماك والشعرى «والاستوائين» والمنقلبين، لكن كان يكفيه أن يقول إنّ مزاج الهواء يصير في أوّل شهر كذا وكذا بحال كذا وكذا، كأنّه قال في المثل إنّ مزاج الهواء يصير في الشهر الذي يقال «ديس»، وهو تشرين الآخَر، بحال كذا وكذا. ولمّا كان استعمال أهل البلدان المختلفة لأسماء الشهور وحسابها مختلفاً، كان أبقراط، لو ذكر اسم هذا الشهر الذي سمّيته قبيل، أعني ديس، لَما كان يعرفه إلّا أهل ماقيدونيا فقط لأنّه اسم شهر من شهورهم، وكان يجهله أهل أثينية وسائر أهل البلدان الأخر.

وأبقراط يقصد أن ينفع بعلمه أهل كلّ بلد وكلّ أمّة. فكان الأجود على حسب غرضه أن يحدّ الأوقات بالاستواء والانقلاب، أمران يعمّان العالم كلّه. وأمّا الشهور فتخصّ أهل بلد بلد وأمّة أمّة. فمن كان لا خبر له بعلم النجوم فليعلم قبل كلّ شيء أنّه قد خالف هوى أبقراط، إذ كان أبقراط يأمر من قصد للطبّ أن يتقدّم فيستعدّ له بتعلّم علم النجوم للحاجة إليه فيما ذكرنا.

وهذا، وإن كان هكذا، فإنّي أرى على كلّ حال أنّ القصد لنفع من تلك حاله أشبه بطريق الرحمة، فذلك يدعوني أن أروم أن أرسم لهم رسماً في أمر الأوقات حتّى أبلغ ما يمكن في نفعهم حتّى، إذا تدبّروه وفهموه ونصبوه نصب أعينهم، نالوا ثمرة جميع ما قال أبقراط في هذا الباب الذي نحن فيه.

فأقول إنّ السنة تنقسم إلى أربعة أقسام بالاستوائين والمنقلبين. فإذا أنت سألتَ رجلاً من المنجّمين عن هذه الأقسام الأربعة في أيّ الشهور من شهور أهل بلدك وفي كم من كلّ واحد منها تقع، قدرتَ أن تفهم عنه ما يصف لك من سائر الأنواء التي تكون بطلوع وغروب كلّ واحد من الكواكب أو من جماعاتها.

وأنا أضرب لك في ذلك مثلاً لتفهّمه به:‌