Digital Corpus for Graeco-Arabic Studies

Galen: In Hippocratis Epidemiarum librum I (On Hippocrates' Epidemics I)

Ἐξεκαθαίρετο μὲν ὅλον τὸ ϲῶμα διὰ τῆϲ ϲτραγγουρίαϲ. ταῦτα δ’ ἀναγκαῖον ἦν πάϲχειν τὰ μόρια, δι’ ὧν ἡ ἔκκριϲιϲ ἐγίγνετο τῶν δριμέων χυμῶν, δηλονότι δακνόμενα καὶ τῷ ϲυνεχεῖ τῆϲ ἀποκρίϲεωϲ ἐνοχλούμενα, διόπερ καὶ ἐπιπόνωϲ εἶχον ἐν αὐτῇ τῇ διόδῳ τῶν οὔρων. χρόνῳ δ’ αὐτοῖϲ πλείονι τὰ τοιαῦτα ϲυμπτώματα ἐγίνετο διὰ τὸ πλῆθοϲ τῶν ἐκκαθαιρομένων περιττωμάτων.

Οὖρα δὲ τούτοιϲιν ᾔει πολλὰ παχέα, ποικίλα καὶ ἐρυθρά [ἐϲτιν], μειξόπυα μετ’ ὀδύνηϲ.

Ταῦτα πάντα τοῦ παντὸϲ ϲώματοϲ ἀποτιθεμένου τὴν περιουϲίαν τῶν μοχθηρῶν χυμῶν ἐγένετο, διὸ καὶ πάντεϲ ἐϲώθηϲαν. ποικίληϲ δ’ οὔϲηϲ αὐτῆϲ, ὡϲ ἔμπροϲθεν ἔφαμεν, (ἄλλο γὰρ ἄλλῳ τὸ πλεονάζον ἦν,) εἰκότωϲ κἀν τοῖϲ οὔροιϲ ἐγένετο ποικιλία, οὐχ ἅπαϲιν ὁμοίων γιγνομένων αὐτῶν, ἀλλὰ τοῖϲ μὲν τούτων, τοῖϲ δὲ τούτων.

Περιεγένοντο δὲ πάντεϲ οὗτοι καὶ οὐδένα τούτων οἶδα ἀποθανόντα. ὅϲα διὰ κινδύνων ...

Διὰ τί μὲν περιεγένοντο, προείρηται, ἐξεκαθάρθηϲαν δὲ διὰ τῶν οὔρων. τὸ δ’ ὅϲα διὰ κινδύνων ἔϲτιν οἳ [ἔνιοι] τῆϲ ἐχο- μένηϲ λέξεωϲ προτάττουϲιν, ἔνθα καὶ τὴν ἐξήγηϲιν αὐτοῦ ποιηϲόμεθα. † μετὰ τὴν δευτέραν κατάϲταϲιν ***

Πεπαϲμοὺϲ τῶν ἀπιόντων πάν- ταϲ πάντοθεν ἐπικαίρουϲ ἢ καλὰϲ καὶ κριϲίμουϲ ἀπο- ϲτάϲιαϲ ϲκοπέεϲθαι.

Ἔνιοι δὴ τὸ πέραϲ τῆϲ προγεγραμμένηϲ καταϲτάϲεωϲ ἀρχὴν ἐποιήϲαντο τῆϲ νῦν προκειμένηϲ διηγήϲεωϲ, ὡϲ ἔχειν αὐτὴν οὕτωϲ· Ὅϲα διὰ κινδύνων, πεπαϲμοὺϲ τῶν ἀπιόντων πάνταϲ

قال جالينوس: إنّ البدن كلّه كان ينقّى بما كان يعرض من تقطير البول، إلّا أنّ تلك الأعضاء التي كانت تكون بطريق ما يستفرغ فيها من تلك الأخلاط الحادّة قد كان ينالها منه ضرر لا محالة. ولذلك كان «يشتدّ أذى» أصحاب ذلك التقطير بما عرض لهم منه للذع الذي كان يعرض في مرور البول بالأعضاء التي يمرّ بها. فلإلجاج القيام بالبول وتواتره كانت هذه الأعراض تلبث بمن عرضت له مدّة طويلة لكثرة الأخلاط التي كانت تستفرغ من البدن.

قال أبقراط: وكانت أبوال هؤلاء أبوالاً كثيرة غليظة مختلفة فيها حمرة، ويخالطها مِدّة مع وجع.

قال جالينوس: إنّ جميع هذه الأشياء إنّما كانت تحدث من طريق دفع البدن كلّه لتلك الأخلاط الرديئة التي كانت كثرت فيه، ولذلك سلم جميع من أصابه ما وصف من هذا. ولمّا كانت تلك الأخلاط مختلفة، كما قلنا قبل، وذلك أنّ الخلط الغالب كان في كلّ واحد من الأبدان غير الخلط الغالب في الآخر، وجب أن يكون في الأبوال أيضاً «اختلاف» فلا تكون أبوال جميعهم على مثال واحد، لكن كان يكون بول بعضهم على نحو من الأنحاء وبول بعضهم على نحو آخر.

قال أبقراط: إلّا أنّ جميع هؤلاء سلم، ولا أعلم أنّ أحداً منهم مات. في الأمراض ذوات الخطر

قال جالينوس: قد خبّرنا فيما تقدّم بالسبب الذي من أجله «سلم هؤلاء»، وهو أنّ أبدانهم نُقِّيَت بالبول. فأمّا قوله «في الأمراض ذوات الخطر» فقد وصله قوم بالكلام الذي يتلو هذا، وسنفسّره في تفسيرنا لذلك الكلام.

وفي هذا الموضع تنقضي صفة أبقراط للحال الثانية من حالات الهواء الثلاثة التي وصفنا في هذه المقالة الأولى. وأمّا ما بعد هذا فهو كلام جاء به بعد فراغه من صفة الحال الثانية من حالات الهواء وقبل صفته للثالثة، بعضه وصف فيه أموراً عامّيّة وبعضه أموراً خاصّيّة من أمور مرضى ذكرهم.

قال أبقراط: ينبغي أن تتفقّد جميع أنحاء النضج ومراتبه من الأشياء التي تبرز من كلّ موضع في أوقاتها وخروج شيء محمود يكون به البحران.

قال جالينوس: فأوصل قوم، كما قلت، آخر الكلام الذي تقدّم بهذا الكلام حتّى جعلوه أوّله، فصار الكلام كلّه على هذا المثال: «في الأمراض ذوات الخطر ينبغي أن تتفقّد جميع أنحاء النضج‌